Tuesday, October 15, 2013

एकादशी रात्रि में श्रीहरि के समीप जागरण का माहात्मय

सब धर्मों के ज्ञातावेद और शास्त्रों के अर्थज्ञान में पारंगतसबके हृदय में रमण करनेवाले श्रीविष्णु के तत्त्व को जाननेवाले तथा भगवत्परायण प्रह्लादजी जब सुखपूर्वक बैठे हुए थेउस समय उनके समीप स्वधर्म का पालन करनेवाले महर्षि कुछ पूछने के लिए आये।
महर्षियों ने कहा : प्रह्रादजी! आप कोई ऐसा साधन बताइयेजिससे ज्ञानध्यान और इन्द्रियनिग्रह के बिना ही अनायास भगवान विष्णु का परम पद प्राप्त हो जाता है।
उनके ऐसा कहने पर संपूर्ण लोकों के हित के लिए उद्यत रहनेवाले विष्णुभक्त महाभाग प्रह्रादजी ने संक्षेप में इस प्रकार कहा: महर्षियों! जो अठारह पुराणों का सार से भी सारतर तत्त्व हैजिसे कार्तिकेयजी के पूछने पर भगवान शंकर ने उन्हें बताया थाउसका वर्णन करता हूँसुनिये।
महादेवजी कार्तिकेय से बोले : जो कलि में एकादशी की रात में जागरण करते समय वैष्णव शास्त्र का पाठ करता हैउसके कोटि जन्मों के किये हुए चार प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो एकादशी के दिन वैष्णव शास्त्र का उपदेश करता हैउसे मेरा भक्त जानना चाहिए। 
जिसे एकादशी के जागरण में निद्रा नहीं आती तथा जो उत्साहपूर्वक नाचता और गाता हैवह मेरा विशेष भक्त है। मैं उसे उत्तम ज्ञान देता हूँ और भगवान विष्णु मोक्ष प्रदान करते हैं। अत: मेरे भक्त को विशेष रुप से जागरण करना चाहिए। जो भगवान विष्णु से वैर करते हैंउन्हें पाखण्डी जानना चाहिए। जो एकादशी को जागरण करते और गाते हैंउन्हें आधे निमेष में अग्निष्टोम तथा अतिरात्र यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। जो रात्रि जागरण में बारंबार भगवान विष्णु के मुखारविंद का दर्शन करते हैंउनको भी वही फल प्राप्त होता है। जो मानव द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के आगे जागरण करते हैंवे यमराज के पाश से मुक्त हो जाते हैं। 
जो द्वादशी को जागरण करते समय गीता शास्त्र से मनोविनोद करते हैंवे भी यमराज के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं। जो प्राणत्याग हो जाने पर भी द्वादशी का जागरण नहीं छोड़तेवे धन्य और पुण्यात्मा हैं। जिनके वंश के लोग एकादशी की रात में जागरण करते हैंवे ही धन्य हैं। जिन्होंने एकादशी को जागरण किया हैंउन्होंने यज्ञदानगयाश्राद्ध और नित्य प्रयागस्नान कर लिया। उन्हें संन्यासियों का पुण्य भी मिल गया और उनके द्वारा इष्टापूर्त कर्मों का भी भलीभाँति पालन हो गया। षडानन ! भगवान विष्णु के भक्त जागरणसहित एकादशी व्रत करते हैंइसलिए वे मुझे सदा ही विशेष प्रिय हैं। जिसने वर्द्धिनी एकादशी की रात में जागरण किया हैउसने पुन: प्राप्त होनेवाले शरीर को स्वयं ही भस्म कर दिया। जिसने त्रिस्पृशा एकादशी को रात में जागरण किया हैवह भगवान विष्णु के स्वरुप में लीन हो जाता है। जिसने हरिबोधिनी एकादशी की रात में जागरण किया हैउसके स्थूल सूक्ष्म सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो द्वादशी की रात में जागरण तथा ताल स्वर के साथ संगीत का आयोजन करता हैउसे महान पुण्य की प्राप्ति होती है। जो एकादशी के दिन ॠषियों द्वारा बनाये हुए दिव्य स्तोत्रों सेॠग्वेदयजुर्वेद तथा सामवेद के वैष्णव मन्त्रों सेसंस्कृत और प्राकृत के अन्य स्तोत्रों से व गीत वाद्य आदि के द्वारा भगवान विष्णु को सन्तुष्ट करता है उसे भगवान विष्णु भी परमानन्द प्रदान करते हैं। 
य: पुन: पठते रात्रौ गातां नामसहस्रकम्। 
द्वादश्यां पुरतो विष्णोर्वैष्णवानां समापत:।
स गच्छेत्परम स्थान यत्र नारायण: त्वयम् । 
जो एकादशी की रात में भगवान विष्णु के आगे वैष्णव भक्तों के समीप गीता और विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता हैवह उस परम धाम में जाता हैजहाँ साक्षात् भगवान नारायण विराजमान हैं। 
पुण्यमय भागवत तथा स्कन्दपुराण भगवान विष्णु को प्रिय हैं। मथुरा और व्रज में भगवान विष्णु के बालचरित्र का जो वर्णन किया गया हैउसे जो एकादशी की रात में भगवान केशव का पूजन करके पढ़ता हैउसका पुण्य कितना हैयह मैं भी नहीं जानता। कदाचित् भगवान विष्णु जानते हों। बेटा! भगवान के समीप गीतनृत्य तथा स्तोत्रपाठ आदि से जो फल होता हैवही कलि में श्रीहरि के समीप जागरण करते समय विष्णुसहस्रनामगीता तथा श्रीमद्भागवत’ का पाठ करने से सहस्र गुना होकर मिलता है। 
जो श्रीहरि के समीप जागरण करते समय रात में दीपक जलाता हैउसका पुण्य सौ कल्पों में भी नष्ट नहीं होता। जो जागरणकाल में मंजरीसहित तुलसीदल से भक्तिपूर्वक श्रीहरि का पूजन करता हैउसका पुन: इस संसार में जन्म नहीं होता।
स्नानचन्दनलेपधूपदीपनैवेघ और ताम्बूल यह सब जागरणकाल में भगवान को समर्पित किया जाय तो उससे अक्षय पुण्य होता है। कार्तिकेय ! जो भक्त मेरा ध्यान करना चाहता हैवह एकादशी की रात्रि में श्रीहरि के समीप भक्तिपूर्वक जागरण करे। एकादशी के दिन जो लोग जागरण करते हैं उनके शरीर में इन्द्र आदि देवता आकर स्थित होते हैं। जो जागरणकाल में महाभारत का पाठ करते हैंवे उस परम धाम में जाते हैं जहाँ संन्यासी महात्मा जाया करते हैं। जो उस समय श्रीरामचन्द्रजी का चरित्रदशकण्ठ वध पढ़ते हैं वे योगवेत्ताओं की गति को प्राप्त होते हैं। 
जिन्होंने श्रीहरि के समीप जागरण किया हैउन्होंने चारों वेदों का स्वाध्यायदेवताओं का पूजनयज्ञों का अनुष्ठान तथा सब तीर्थों में स्नान कर लिया। श्रीकृष्ण से बढ़कर कोई देवता नहीं है और एकादशी व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। जहाँ भागवत शास्त्र हैभगवान विष्णु के लिए जहाँ जागरण किया जाता है और जहाँ शालग्राम शिला स्थित होती हैवहाँ साक्षात् भगवान विष्णु उपस्थित होते हैं।
व्रत खोलने की विधि :
द्वादशी को सेवापूजा की जगह पर बैठकर भुने हुए सात चनों के चौदह टुकड़े करके अपने सिर के पीछे फेंकना चाहिए। मेरे सात जन्मों के शारीरिकवाचिक और मानसिक पाप नष्ट हुए’ - यह भावना करके सात अंजलि जल पीना और चने के सात दाने खाकर व्रत खोलना चाहिए।

(श्री योग वेदांत सेवा समिति की पुस्तक "एकादशी व्रत कथाएँ" से)

No comments:

Post a Comment